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मैं अपनी कुटिया में खुश हूँ

मैं अपनी कुटिया में खुश हूँ तुम अपना महल सजाना । जिस घर से गांठ बंधी है रखना उसकी मर्यादा , मैं क्या था तुम क्या थी यह सोच न करना ज्यादा , वह महके सदा गली प्रिय जो द्वार तुम्हारे जाये। मैं निकलूं कभी गली उस तुम घूंघट खींच लजाना । मैं अपनी कुटिया में खुश हूँ तुम अपना महल सजाना ॥ संध्या में देहरी पर तुम एक जलाना बाती , चमके चाद सितारे , तब मन की पढ़ना पाती , जब गहन निशा में चातक की चीख कभी टकराये , तब तब उठ करके साधो तुम अपने साज बजाना । मैं अपनी कुटिया में खुश हूँ तुम अपना महल सजाना ॥ हीरा मोती पन्ना सब कुछ है पास तुम्हारे , मैं क्या दे सकता हूँ तुमको बोलो ? क्या पास हमारे , संयम धीरज का बंधन जब तोड़ जिया अकुलाये , तो लाज बचाये रखना नारी का लाज खजाना । मैं अपनी कुटिया में खुश हूँ तुम अपना महल सजाना ॥