लाली लख  सब  कर रहे भूल - भूल कर भूल
नहीं  पता  निर्गन्ध हैं      ये  सेमर   के फूल
चौकठ, देहरी जब  रहा  तब थी उसकी लाज 
चौकठ  बिना  कपाट  है   नये - नये  अंदाज  
स्वारथ में तन मन  बिका टूट गया व्यवहार 
मुक्त   सभी   के   मन    हुए   टूटे    मुक्ताहार 
कौन जानता किस समय घटना घटे विचित्र 
मित्र  शत्रु   बन   जाएगा,  शत्रु   बनेगा  मित्र 
अनुसुय्या  सीता  गयीं  चला  गया  वह राज 
पत्नी  व्रत  हैं  माँगती  सभी  लड़कियाँ  आज 
   

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