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मेरे जैसा गाँव नहीं हैं

दरिया में अब नाव नहीं है, अमराई में छाँव नहीं है गाँव बहुत से होंगे लेकिन मेरे जैसा गाँव  नहीं है पग -पग पर छेंका करते है आँखों को सेंका  करते हैं घुरहू के आँगन में रोंड़ा धनिया पर फेंका करते हैं दो क्षण को जो सुख दे जाये वह लोगो में भाव नहीं है   गाँव बहुत से होंगे लेकिन मेरे जैसा गाँव  नहीं है चाल चलन है रहन नहीं है   द्वार बहुत है सहन नहीं है कहने को ये गाँव  की मेरी लड़की है पर बहन नहीं है कौवा मामा कभी बोलते थे वैसा अब काँव नहीं है   गाँव बहुत से होंगे लेकिन मेरे जैसा गाँव  नहीं है बिच्छु जैसे डंक नहीं हैं सब राजा हैं , रंक नहीं हैं मेरी पीड़ा को सहला दे आँचल वैसे अंक नहीं हैं दरिया दिल वाली दरिया है पर दरिया में नाँव  नहीं है पहले जैसा राज नहीं है स्वर है लेकिन साज नहीं है साड़ी   में अब भी घूंघट  है किन्तु आँख  में लाज नहीं है श्रद्धा भाव जनमने वाली पायल है पर पाँव नहीं है   गाँव बहुत से होंगे लेकिन मेरे जैसा गाँव  नहीं हैं

छोटी सी बात ' कहानी '

'तू यहाँ बैठी गाना सुन रही है और हम तुझे खोजते -खोजते परेशान हो गए ! 'गाना नहीं भैय्या, भजन ।' 'चुप शरारती कहीं की ! घर में मां  परेशान  कि क्या हो गया अभी तक नहीं आयी और हमने घर से स्कूल तक एक कर डाला और तू यहाँ गन्दगी में बैठी गाना सुन रही है !' 'भैय्या  जी ,बिटिया का कोई दोष नहीं, दोष मेरा है ।   यह तो दरवाजे पर खड़ी - खड़ी गीत सुन रही थी ।   मैंने ही इसे अन्दर बुला लिया । ' 'चुप रहो ! बड़े गवैय्या बने हो ! फिर कभी इसे बुलाने का साहस मत करना । और तू जो इधर आयी तो तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगा समझी ?'                           ........................................................... 'शंकर ! श्रद्धा  मिली ?' 'मिल गयी माँ ,आ रही है पीछे - पीछे । 'कहाँ थी ?' 'गली के कोने पर वो बाबा रहता है न , उसी के यहाँ गूदड़ो में बठी भजन सुन रही थी ।' 'हे भगवान , क्यों री तू वहाँ क्यों गयी थी उस भिखारी के पास ? ख़बरदार , फिर से उधर पैर रक्खा त...