दरिया में अब नाव नहीं है, अमराई में छाँव नहीं है
गाँव बहुत से होंगे लेकिन मेरे जैसा गाँव नहीं है
पग -पग पर छेंका करते है
आँखों को सेंका करते हैं
घुरहू के आँगन में रोंड़ा
धनिया पर फेंका करते हैं
दो क्षण को जो सुख दे जाये वह लोगो में भाव नहीं है
गाँव बहुत से होंगे लेकिन मेरे जैसा गाँव नहीं है
चाल चलन है रहन नहीं है
द्वार बहुत है सहन नहीं है
कहने को ये गाँव की मेरी
लड़की है पर बहन नहीं है
कौवा मामा कभी बोलते थे वैसा अब काँव नहीं है
गाँव बहुत से होंगे लेकिन मेरे जैसा गाँव नहीं है
बिच्छु जैसे डंक नहीं हैं
सब राजा हैं , रंक नहीं हैं
मेरी पीड़ा को सहला दे
आँचल वैसे अंक नहीं हैं
दरिया दिल वाली दरिया है पर दरिया में नाँव नहीं है
पहले जैसा राज नहीं है
स्वर है लेकिन साज नहीं है
साड़ी
में अब भी घूंघट है
किन्तु आँख में लाज नहीं है
श्रद्धा भाव जनमने वाली पायल है पर पाँव नहीं है
गाँव बहुत से होंगे लेकिन मेरे जैसा गाँव नहीं हैं
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