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लेखनी कुछ बोल दे तू

लेखनी कुछ बोल दे तू । जिन्दगी का मोल दे तू ॥ रागिनी का राग टूटा छंद लय का भाव टूटा छोड़ जग के आज क्रंदन जोड़ दे तू प्यार बंधन इस परत को खोल दे तू । लेखनी कुछ बोल दे तू ॥ बंद कर यह दग्ध मंथन लेप कर दे मलय चन्दन प्यास चातक सी बनी है आज घातक सी ठनी है इन सभी का पोल दे तू । लेखनी कुछ बोल दे तू ॥ तम कलुष सारे बहाकर ज्ञान गंगा में नहाकर तार वीड़ा के बजा दे कल्पनाओ को सजा दे इस तरह रस घोल दे तू । लेखनी कुछ बोल दे तू ॥

आया बमभोला था

मुना देवी माता पिता पंडित ब्रजनाथ जी के कई हुए पूतो में सही में वे सपूत थे । मालवा के रहे इस हेतु मालवीय हुए मदन मोहन महामना देव दूत थे । देखने में सीधे सादे भव्य रूप रंग वाले किन्तु बुद्धि सम्पदा की खान वे अकूत थे । त्यागी तपोनिष्ट हुए खुद में विशिष्ट हुए बहुतों के इष्ट हुए किन्तु अवधूत थे । सृष्टि की समुन्नति उदात्त भावना रखे उसे समाज प्यार से पुकारता महामना । दृष्टि की पवित्रता का भान , ज्ञान से लखे उसे समाज प्यार से पुकारता महामना । वृष्टि का स्वाभाव ले उदार भावना रखे उसे समाज प्यार से पुकारता महामना । हृष्टि की सुमुग्धता सदा समाज हेतु हो तो समाज प्यार से पुकारता महामना ।। कर्म ही है पूजा जान कर्मठी सा कार्य करे तो समाज प्यार से पुकारता महामना । धर्मं को है धारता औ धर्मं को संवारता सुधर्म के लिए
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डॉ . उमा शंकर चतुर्वेदी ' कंचन ' की कृति " गंगा " का लोकार्पण करते हुए बाएँ से के . ए न. गोविन्दाचार्य , शंकर प्रसाद जायसवाल , ओ . पी . सिंह एवं कंचन जी। नीचे के चित्र में डॉ. कंचन, अविनाश चतुर्वेदी और डॉ. संजीव शर्मा।