लेखनी कुछ बोल दे तू
लेखनी कुछ बोल दे तू । जिन्दगी का मोल दे तू ॥ रागिनी का राग टूटा छंद लय का भाव टूटा छोड़ जग के आज क्रंदन जोड़ दे तू प्यार बंधन इस परत को खोल दे तू । लेखनी कुछ बोल दे तू ॥ बंद कर यह दग्ध मंथन लेप कर दे मलय चन्दन प्यास चातक सी बनी है आज घातक सी ठनी है इन सभी का पोल दे तू । लेखनी कुछ बोल दे तू ॥ तम कलुष सारे बहाकर ज्ञान गंगा में नहाकर तार वीड़ा के बजा दे कल्पनाओ को सजा दे इस तरह रस घोल दे तू । लेखनी कुछ बोल दे तू ॥